धारासार बरसते बादलों को देखकर
----------------------------------------
बरसा जल ही जल ,
जल , इतना जल ,
ओ रे ओ बादल ,
अब तो मत बरसो !
दम्भ तुम्हारा आकाशी
मृगछौनों को भारी ,
शंकाकुल जंगल में
जीने की लाचारी ;
पाँव उखड़ते गाँव ,
अरे ओ निर्मम ,
मत हरषो !
ओ रे ओ बादल ,
अब तो मत बरसो !
कमलवनों की गंध
सड़ी पानी में
हरियाली की देह
गड़ी पानी में
ओ अशरीरी ,
दहलाओ मत ,
आश्वासन परसो !
ओ रे ओ बादल ,
अब तो मत बरसो !
- श्रीकृष्ण शर्मा
------------------------------------------
( रचनाकाल - 1964 ) , पुस्तक - '' फागुन के हस्ताक्षर '' , पृष्ठ - 68
sksharmakavitaye.blogspot.in
shrikrishnasharma.wordpress.com
----------------------------------------
बरसा जल ही जल ,
जल , इतना जल ,
ओ रे ओ बादल ,
अब तो मत बरसो !
दम्भ तुम्हारा आकाशी
मृगछौनों को भारी ,
शंकाकुल जंगल में
जीने की लाचारी ;
पाँव उखड़ते गाँव ,
अरे ओ निर्मम ,
मत हरषो !
ओ रे ओ बादल ,
अब तो मत बरसो !
कमलवनों की गंध
सड़ी पानी में
हरियाली की देह
गड़ी पानी में
ओ अशरीरी ,
दहलाओ मत ,
आश्वासन परसो !
ओ रे ओ बादल ,
अब तो मत बरसो !
- श्रीकृष्ण शर्मा
------------------------------------------
( रचनाकाल - 1964 ) , पुस्तक - '' फागुन के हस्ताक्षर '' , पृष्ठ - 68
sksharmakavitaye.blogspot.in
shrikrishnasharma.wordpress.com
No comments:
Post a Comment