टेसुई बादल पड़े काले
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टेसुई बादल पड़े काले ।
सूखे काँस जल उठे धू - धू ,
व्योम गुलाब हुआ ,
स्वर्ण - रचित सब श्लोक
उड़ गये ,
होकर धुआँ - धुँआ ;
दोष किसका ?
सेंत कर जो हम न रख पाये
उजाले ।
टेसुई बादल पड़े काले ।
सूरज
ब्लैकहोल में डूबा ,
दिन अधमरा पड़ा ,
अपना जाना - पहचाना सब
अंधकार में गड़ा ;
कौन है ?
जो इस अँधेरे को
किरण - जैसा खंगाले ।
टेसुई बादल पड़े काले ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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( रचनाकाल - 1964 ) . पुस्तक - '' फागुन के हस्ताक्षर '' , पृष्ठ - 69
sksharmakavitaye.blogspot.in
shrikrishnasharma.wordpress.com
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टेसुई बादल पड़े काले ।
सूखे काँस जल उठे धू - धू ,
व्योम गुलाब हुआ ,
स्वर्ण - रचित सब श्लोक
उड़ गये ,
होकर धुआँ - धुँआ ;
दोष किसका ?
सेंत कर जो हम न रख पाये
उजाले ।
टेसुई बादल पड़े काले ।
सूरज
ब्लैकहोल में डूबा ,
दिन अधमरा पड़ा ,
अपना जाना - पहचाना सब
अंधकार में गड़ा ;
कौन है ?
जो इस अँधेरे को
किरण - जैसा खंगाले ।
टेसुई बादल पड़े काले ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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( रचनाकाल - 1964 ) . पुस्तक - '' फागुन के हस्ताक्षर '' , पृष्ठ - 69
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