जीने के लिए
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आँखों से बह - बह कर
हर आँसू सूख गया
जीने के लिए
जन्म मैंने ले लिया नया ।
सूरज की आँखें
नक्षत्र बनीं ,
उजियारी
कोहरे में
सनी - सनी ;
दिन का सब
आँखों में घूम गया ।
जीने के लिए
जन्म मैंने ले लिया नया ।
परिवर्तन इतना ,
क्या झूठ कहूँ ?
इन प्रहरों
प्रहर वही
लिये रहूँ ?
बहका तो
यात्रा से चूक गया ।
जीने के लिए
जन्म मैंने ले लिया नया ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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( रचनाकाल - 1964 ) , पुस्तक - '' फागुन के हस्ताक्षर '' , पृष्ठ - 71
sksharmakavitaye.blogspot.in
shrikrishnasharma.wordpress.com
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आँखों से बह - बह कर
हर आँसू सूख गया
जीने के लिए
जन्म मैंने ले लिया नया ।
सूरज की आँखें
नक्षत्र बनीं ,
उजियारी
कोहरे में
सनी - सनी ;
दिन का सब
आँखों में घूम गया ।
जीने के लिए
जन्म मैंने ले लिया नया ।
परिवर्तन इतना ,
क्या झूठ कहूँ ?
इन प्रहरों
प्रहर वही
लिये रहूँ ?
बहका तो
यात्रा से चूक गया ।
जीने के लिए
जन्म मैंने ले लिया नया ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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( रचनाकाल - 1964 ) , पुस्तक - '' फागुन के हस्ताक्षर '' , पृष्ठ - 71
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