गीले क्षण
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बदरीला मौसम ,
गीले क्षण
भीगी हैं आँखें ,
भारी मन ।
चहल - पहल थकी ,
मूक कोलाहल ,
मेघ - धूम में डूबा
राजमहल ;
कैसे बच पायेंगे ,
ढहते प्रन ?
बदरीला मौसम ,
गीले क्षण ।
संग - रेख छुटी ,
विवश यात्राएँ ,
रह जायेंगे
बनकर गाथाएँ ;
रेत के शहर में
ज्यों जल - दरपन ।
बदरीला मौसम ,
गीले - क्षण ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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( रचनाकाल - 1964 ) , पुस्तक - '' फागुन के हस्ताक्षर '' , पृष्ठ - 73
sksharmakavitaye.blogspot.in
shrikrishnasharma.wordpress.com
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बदरीला मौसम ,
गीले क्षण
भीगी हैं आँखें ,
भारी मन ।
चहल - पहल थकी ,
मूक कोलाहल ,
मेघ - धूम में डूबा
राजमहल ;
कैसे बच पायेंगे ,
ढहते प्रन ?
बदरीला मौसम ,
गीले क्षण ।
संग - रेख छुटी ,
विवश यात्राएँ ,
रह जायेंगे
बनकर गाथाएँ ;
रेत के शहर में
ज्यों जल - दरपन ।
बदरीला मौसम ,
गीले - क्षण ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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( रचनाकाल - 1964 ) , पुस्तक - '' फागुन के हस्ताक्षर '' , पृष्ठ - 73
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