चलता दिन थमा
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उजियारा गिरा ,
थका - हारा ।
चलता दिन थमा ,
हवा सुट्ट खड़ी ,
भुच्च अँधेरे की -
वह धौल पड़ी ;
छूट गया
हाथों से पारा ।
उजियारा गिरा ,
थका - हारा ।
किरचों - किरचों
चुप्पी बिखरी ,
शातिर सन्नाटे की -
ठकुराइस पसरी ;
पर ढिबरी धुँधलाती ,
आँखों ले भिनसारा ।
उजियारा गिरा ,
थका - हारा ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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( रचनाकाल - 1965 ) , पुस्तक - '' फागुन के हस्ताक्षर '' , पृष्ठ -78
sksharmakavitaye.blogspot.in
shrikrishnasharma.wordpress.com
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उजियारा गिरा ,
थका - हारा ।
चलता दिन थमा ,
हवा सुट्ट खड़ी ,
भुच्च अँधेरे की -
वह धौल पड़ी ;
छूट गया
हाथों से पारा ।
उजियारा गिरा ,
थका - हारा ।
किरचों - किरचों
चुप्पी बिखरी ,
शातिर सन्नाटे की -
ठकुराइस पसरी ;
पर ढिबरी धुँधलाती ,
आँखों ले भिनसारा ।
उजियारा गिरा ,
थका - हारा ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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( रचनाकाल - 1965 ) , पुस्तक - '' फागुन के हस्ताक्षर '' , पृष्ठ -78
sksharmakavitaye.blogspot.in
shrikrishnasharma.wordpress.com
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (13-03-2015) को "नीड़ का निर्माण फिर-फिर..." (चर्चा अंक - 1916) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद मयंक जी |
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ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतिभा जी |
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