चाँदनी की देह
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भोर का पीकर जहर अब चाँदनी की
देह नीली पड़ रही है ।
टल गया है वह मुहूरत , जबकि पड़तीं
भाँवरें कुण्ठित सुखों की
इसलिए ही चुप हुआ है झिल्लियों के घर
पुरोहित मंत्र पढ़ता ;
क्या करे अभिनीत कोई और अभिनय
जब किसी ने है गिरा दी ,
मधुर सपनों की सुघर रंगस्थली के
सुखद दृश्यों पर यवनिका ;
घट गयी घटना यहाँ पर जो अचानक ,
है उसी की ओस साक्षी ,
और जिसकी याद करके साँस लम्बी
अब लगी चलने हवा की ;
रात के अपराध पर अब तारिकाएँ
आत्महत्या कर रही हैं ।
भोर का पीकर ज़हर अब चाँदनी की
देह नीली पड़ रही है ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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( रचनाकाल - 1954 ) , पुस्तक - '' फागुन के हस्ताक्षर '' , / पृष्ठ - 25
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भोर का पीकर जहर अब चाँदनी की
देह नीली पड़ रही है ।
टल गया है वह मुहूरत , जबकि पड़तीं
भाँवरें कुण्ठित सुखों की
इसलिए ही चुप हुआ है झिल्लियों के घर
पुरोहित मंत्र पढ़ता ;
क्या करे अभिनीत कोई और अभिनय
जब किसी ने है गिरा दी ,
मधुर सपनों की सुघर रंगस्थली के
सुखद दृश्यों पर यवनिका ;
घट गयी घटना यहाँ पर जो अचानक ,
है उसी की ओस साक्षी ,
और जिसकी याद करके साँस लम्बी
अब लगी चलने हवा की ;
रात के अपराध पर अब तारिकाएँ
आत्महत्या कर रही हैं ।
भोर का पीकर ज़हर अब चाँदनी की
देह नीली पड़ रही है ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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( रचनाकाल - 1954 ) , पुस्तक - '' फागुन के हस्ताक्षर '' , / पृष्ठ - 25
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