Saturday, February 7, 2015

'' अम्मा की याद में '' नामक गीत , कवि स्व. श्रीकृष्ण शर्मा के गीत संग्रह - '' फागुन के हस्ताक्षर '' से लिया गया है -

                                                                                                                                                                       




  अम्मा की याद में  
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चले गये सब चाचा के संग ,
बचपन के चमकीले नव रंग |
पर अपनी किस्मत ले फूटी ,
अम्मा नहीं टूट कर टूटी |
हम भाई व बहिन की खातिर
हर विपदा को करती झूठी | |

       न थीं चप्पलें , पाँव बिंबाई ,
       सूनी आँखें , मुख पर झाँई |
       चिन्ताओं से टूटी काया ,
       ढलती ऊम्र , थकन गहराई ||

धन - सम्पत्ति न कोई पूँजी ,
मेहनत छोड़ , न आशा दूजी |
भूखे - अधभूखे रह जाना ,
कतर - ब्योंत कर खर्च चलाना |
दुःख अपने , अपने अभाव थे ,
तकलीफ़ों के क्या बनाव थे ?

       फिर भी अम्मा धीरज धर कर ,
       हमें जिलाये थी मर - मर कर |
       चिन्ताओं का छोर नहीं था ,
       ध्रुव - रातों का भोर नहीं था ||

रोज जठर की आग बुझाना ,
तन ढँकना , ओढ़ना - बिछाना | 
घर - आयों की खातिर करना ,
सामाजिक व्यवहार निभाना |
मुझे पढ़ा कर योग्य बनाना ,
बिटिया का भी ब्याह रचाना | |

       बीमारी या आधी - व्याधी ,
       ख़र्चे लम्बे , चादर आधी ,
       लेकिन हाथ नहीं फैलाया ,
       चुप - चुप सारा बोझ उठाया | |

अपनी अम्मा धुनी बहुत थी ,
पढ़ी न थी , पर गुनी बहुत थी |
घर - बाहर की जग - जहान की
बातें देखी - सुनी बहुत थीं | |
अनुभव , दूरंदेश समझ थी ,
स्वाभिमानिनी , निडर , खरज थी | |

       मुश्किल से ना हारी खायी ,
       कामों में फुर्ती सुघरायी ;
       लीपा - पोती , चौका - बासन ,
       किस्से , गीत , खुशी के प्राशन | |

समय पड़े पर आस - पास के ,
बुरे वक्त में साथ निभाना |
हारी बीमारी में सेवा ,
हिम्मत देना , धीर बँधाना  |
अम्मा से सबको थी हिम्मत ,
हिम्मत से अम्मा को हिम्मत | |

       मैं छह का था , बहिन तीन की ,
       जब गुजरे थे चाचा अपने |
       सूत कातकर , बोर बनाकर ,
       अम्मा पाल रही थी सपने | |

पर इसमें गुजरान न होती ,
सोच - फिकर में रातें खोती |
आखिर अपना मन पक्का कर ,
अम्मा निकली घर से बाहर |
सद्ग्रहस्थ  के घर में खाना ,
जाकर दोनों वक्त बनाना |
भले नौकरी , नहीं  गिला था ,
आमद का नव स्रोत मिला था | |

       बड़े अँधेरे अम्मा उठती ,
       कामों को निबटाने  जुटती |
       नहा और धो पानी भरती ,
       बहिना झाड़ू - पौछा करती |

इसी बीच रोटियाँ बनाकर ,
खिला - पिला कर जाती अम्मा |
दुपहर एक - डेढ़ घंटे , फिर ,
आठ बजे तक आती अम्मा |
यों कड़वे दिन बीत रहे थे ,
किसी तरह हम जीत रहे थे | |

       सन पचास जैसे ही आया ,
       सत्रह में दसवीं कर पाया |
       हाथ हुए बहिना के पीले ,
       घिर आये बादल करुनीले |
       बहिन गई , ले गयी हँसी सब ,
       ममता लोहा बन पायी कब ?

गुजर रहे थे दिन ऐसे ही ,
पर खटती अम्मा वैसे ही |
अब मुझको  अम्मा की चिन्ता ,
अम्मा को चिन्ता थी मेरी |
दुःख सहने में बज्जर छाती ,
पर गलती बर्फ़ीली ढ़ेरी | |

       इसी बीच बारहवीं कर ली ,
       किन्तु नौकरी ने न ख़बर ली |
       हाथ - पैर मारे बहुतेरे ,
       नहीं भाग्य ने पर दृग फेरे |
       औरों ने भी ज़ोर लगाया ,

पर न भँवर से बाहर आया |
उफ़ , यह कैसी लाचारी थी ,
कोशिश किस्मत से हारी थी | |
मैं उनका भावी सपना था ,
पर निकला सपने - सा झूठा |
समझी थी तम में उजियारा ,
पर मैं निकला तारा टूटा | |

       हे विधना, हर पग असफलता ,
       हर पल विक्षत होती क्षमता |
       यह सागर क्या पार न होगा ,
       निकट सुबह का द्वार न होगा ?

इसी हताशा ने सब तोड़ा ,
अम्मा ने सब से मुँह मोड़ा |
सदी बीसवीं का बावन सन ,
दिबिस नवम्बर स्वर्गारोहण |
रहा देखता मैं विपन्न मन
बिखर गया सब होकर कण - कण | |

       अम्मा ने समझा था आशा ,
       मुझे सहारा अच्छा - खासा |
       पर मैं दे न सका पलभर सुख ,
       देता रहा सिर्फ़ चिन्ता - दुःख | |

खटते - खटते बीत गया सब ,
भरते - भरते रीत गया सब |
पर ज्यों - का - त्यों था अँधियारा ,
सिमटा नहीं गर्दिशी पारा |
तप - तपकर हर साँस गुजारी ,
आँसू पर खारी -के - खारी | |

       एक न इच्छा पूर्ण कर सका ,
       सच न कर सका सपना कोई |
       मैं वसंत बनकर न हँस सका ,
       जब मुझ पतझर पर तू रोयी | |

लगा कि मैं अयोग्य - अक्षम हूँ ,
हतचेतना अतिक्रमिक कदम हूँ |
मेरा होना भी क्या होना ?
व्यर्थ निरर्थक लघुतम बौना  | |

       आज न तू , पर सुख का क्षण है ,
       विगत समय ज्यों नीराजन है |
       तेरे आशीषों का फल , जो
       मरुथल ही अब नंदनवन है | |


                                                              - श्रीकृष्ण शर्मा


( कृपया इसे पढ़ कर अपने विचार अवश्य लिखें | आपके विचारों का स्वागत है| धन्यवाद | )

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पुस्तक - '' फागुन के हस्ताक्षर ''  ,   पृष्ठ - 28, 29, 30, 31, 32
    

                                 

sksharmakavitaye.blogspot.in
shrikrishnasharma.wordpress.com                                                                             

सुनील कुमार शर्मा 
पी . जी . टी . ( इतिहास ) 
पुत्र –  स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय ,
पचपहाड़ , जिला – झालावाड़ , राजस्थान .
पिन कोड – 326512
फोन नम्बर - 9414771867








                                                                                                                                                                           



                                                                                                                                                                   

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