चुभती सुधि
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चुभती सुधि शूल ज्यों करील के ।
नैन हम भरे हुए झील के ।
ग़ैरों की मर्ज़ी पर
व्योम में उड़े ,
लेकिन मज़बूरी में
टूट कर गिरे ;
हम ऐसे पंख अबाबील के ।
चुभती सुधि शूल ज्यों करील के ।
नैन हम भरे हुए झील के ।
तम में हम उजियाला
छापते रहे ,
अमृत - सी साँसों को
बाँटते रहे ;
हम बुझते दीपक कन्दील के ।
चुभती सुधि शूल ज्यों करील के ।
नैन हम भरे हुए झील के ।
राह के किनारे ही
खड़े रह गये ;
अपनी बेबसियों में
गड़े रह गये ;
जैसे हम पत्थर हों मील के ।
चुभती सुधि शूल ज्यों करील के ।
नैन हम भरे हुए झील के ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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( रचनाकाल - 1959 ) , पुस्तक -'' फागुन के हस्ताक्षर '' , पृष्ठ - 53
sksharmakavitaye.blogspot.in
shrikrishnasharma.wordpress.com
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चुभती सुधि शूल ज्यों करील के ।
नैन हम भरे हुए झील के ।
ग़ैरों की मर्ज़ी पर
व्योम में उड़े ,
लेकिन मज़बूरी में
टूट कर गिरे ;
हम ऐसे पंख अबाबील के ।
चुभती सुधि शूल ज्यों करील के ।
नैन हम भरे हुए झील के ।
तम में हम उजियाला
छापते रहे ,
अमृत - सी साँसों को
बाँटते रहे ;
हम बुझते दीपक कन्दील के ।
चुभती सुधि शूल ज्यों करील के ।
नैन हम भरे हुए झील के ।
राह के किनारे ही
खड़े रह गये ;
अपनी बेबसियों में
गड़े रह गये ;
जैसे हम पत्थर हों मील के ।
चुभती सुधि शूल ज्यों करील के ।
नैन हम भरे हुए झील के ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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( रचनाकाल - 1959 ) , पुस्तक -'' फागुन के हस्ताक्षर '' , पृष्ठ - 53
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