कौन जाने ?
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( शरद् पूर्णिमा की रात को ताज की पृष्ठभूमि में लिखित )
गीत तो गाये बहुत जाने - अनजाने ,
स्वर तुम्हारे पास पहुँचे या न पहुँचे , कौन जाने ?
उड़ गये कुछ बोल जो मेरे हवा में ,
स्यात् उनकी कुछ भनक तुमको लगी हो |
स्वप्न के निशि - होलिका में रंग - घोले ,
स्यात् कोरी नींद की चूनर रंगी हो |
भेज दी मैंने तुम्हें लिख ज्योति - पाती ,
साँझ - बाती के समय दीपक जलाने के बहानें !
गीत तो गाये बहुत ...
ये शरद् का चाँद सपना देखता है ,
आज किस बिछुड़ी हुई मुमताज का यों ?
गुम्बदों में गूँजती प्रतिध्वनि उड़ाती ,
आज ये उपहास हर आवाज़ का क्यों ?
संगमरमर पर चरन ये चाँदनी के ,
बुन रहे किस रूप के रंगीन ताने और बाने ?
गीत तो गाये बहुत ...
छू गुलाबी रात का शीतल - सुखद तन ,
आज मौसम ने सभी आदत बदल दी |
ओस - कन में दूब की गीली बरौनी ,
छोड़ कर ये रिमझिमें किस ओर चल दी ?
कौन - सी धरती सुलगती देख कर के ,
आज बादल बन गये हैं इस धरा को ही विराने ?
गीत तो गाये बहुत ...
प्रात की किरनें कमल के लोचनों में ,
और धुँधला शशि हुआ जाता दिये में |
रात का जादू मिटा जाता इसी से ,
एक अनजानी कसक जगती हिये में |
ग्रह - उपग्रह टूटते टकरा सपन के ,
जबकि आकर्षण पड़ें हैं सौरमण्डल के पुराने !
गीत तो गाये बहुत जाने - अजाने ,
स्वर तुम्हारे पास पहुँचे या न पहुँचे , कौन जाने ?
- श्रीकृष्ण शर्मा
( कृपया इसे पढ़ कर अपने विचार अवश्य लिखें | आपके विचारों का स्वागत है| धन्यवाद | )
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पुस्तक - '' फागुन के हस्ताक्षर '' , पृष्ठ - 38, 39sksharmakavitaye.blogspot.in
shrikrishnasharma.wordpress.com
सुनील कुमार शर्मा
पी . जी . टी . ( इतिहास )
पुत्र – स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय ,
पचपहाड़ , जिला – झालावाड़ , राजस्थान .
पिन कोड – 326512
फोन नम्बर - 9414771867
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