झिनपिन - झिनपिन
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झिनपिन - झिनपिन बूँदा - बाँदी ,
गल -गल टपक रही है चाँदी ;
लगता बूढ़ी बरखा माई ,बेहद आज थकी औ ' मांदी !
झिनपिन - झिनपिन बूँदा - बाँदी !
बादल जैसे - दूध सफ़ेदी ,
सन्ध्या के बालों पर मेंहदी ;
रात कुसुम्बा भरा कटोरा , पीकर है धरती उन्मादी !
झिनपिन - झिनपिन बूँदा - बाँदी !
पवन गड़रिया , भेड़ बदरिया ,
मेघ साँवरे गौर बिजुरिया ;
बरखा ने नभ की खूँटी पर , इन्द्रधनुष की धोती बाँदी !
झिनपिन - झिनपिन बूँदा - बाँदी !
कभी सियाह , कभी हैं नीले ,
लाल - बैंजनी - भूरे - पीले ;
रंग बदलते नेताओं - से बादल भी हैं अवसरवादी !
झिनपिन - झिनपिन बूँदा - बाँदी !
सुबह सुकेशिनी बंगालिन - सी ,
दुपहरिया है पंजाबिन - सी ;
ढलती धूप सुघर कश्मीरिन , रात कि संथालिन शहज़ादी !
झिनपिन - झिनपिन बूँदा - बाँदी !
- श्रीकृष्ण शर्मा
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( रचनाकाल - 1959 ) . पुस्तक - '' फागुन के हस्ताक्षर '' , पृष्ठ - 52
sksharmakavitaye.blogspot.in
shrikrishnasharma.wordpress.com
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झिनपिन - झिनपिन बूँदा - बाँदी ,
गल -गल टपक रही है चाँदी ;
लगता बूढ़ी बरखा माई ,बेहद आज थकी औ ' मांदी !
झिनपिन - झिनपिन बूँदा - बाँदी !
बादल जैसे - दूध सफ़ेदी ,
सन्ध्या के बालों पर मेंहदी ;
रात कुसुम्बा भरा कटोरा , पीकर है धरती उन्मादी !
झिनपिन - झिनपिन बूँदा - बाँदी !
पवन गड़रिया , भेड़ बदरिया ,
मेघ साँवरे गौर बिजुरिया ;
बरखा ने नभ की खूँटी पर , इन्द्रधनुष की धोती बाँदी !
झिनपिन - झिनपिन बूँदा - बाँदी !
कभी सियाह , कभी हैं नीले ,
लाल - बैंजनी - भूरे - पीले ;
रंग बदलते नेताओं - से बादल भी हैं अवसरवादी !
झिनपिन - झिनपिन बूँदा - बाँदी !
सुबह सुकेशिनी बंगालिन - सी ,
दुपहरिया है पंजाबिन - सी ;
ढलती धूप सुघर कश्मीरिन , रात कि संथालिन शहज़ादी !
झिनपिन - झिनपिन बूँदा - बाँदी !
- श्रीकृष्ण शर्मा
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( रचनाकाल - 1959 ) . पुस्तक - '' फागुन के हस्ताक्षर '' , पृष्ठ - 52
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धन्यवाद मयंक जी |
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