Monday, February 16, 2015

'' तुम नहीं हो इसलिए ही '' नामक गीत , कवि श्रीकृष्ण शर्मा के गीत संग्रह - '' फागुन के हस्ताक्षर '' से लिया गया है -

                                                                             







तुम नहीं हो इसलिए ही
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गीत प्राणों का अभी तक होंठ पर आया नहीं है । 
चाहता था मैं जिसे गाना , अभी गाया नहीं है । । 

        भावना का फूल मैं ऐसा खिलाना चाहता था ,
        दृष्टि में हर एक के ही हो बसी जिसकी सुघरता ;
        और जिसकी गन्ध के बादल गगन में छा रहे हों ,
        वृष्टि की हर बूँद में जिसकी बरसती हो तरलता ;

खिल सके जिसमें सुघरतम - गन्धमय कविता - कुसुम यह ,
कल्पना में अब तलक मधुमास वह आया नहीं है । । 

गीत प्राणों का अभी तक होंठ पर आया नहीं है । 
चाहता था मैं जिसे गाना , अभी गाया नहीं है । । 

        चाहता गढ़ना अपरिचित मूर्ति अपनी कामना की ,
        रूप के बादलव  में जिसको तनिक होती न देरी ;
        बन रहा है  एक धुँधला चित्र मेरी चेतना में ,
        ये लकीरें दे नहीं पायीं जिसे अभिव्यक्ति मेरी ;

हू -ब -हू अपने हृदय में जो कि उस छवि को उतारे ,
किन्तु ऐसा सृष्टि में दरपन कहीं पाया नहीं है । । 
गीत प्राणों का अभी तक होंठ पर आया नहीं है । 
चाहता था मैं जिसे गाना , अभी गाया नहीं है । । 

        आज कहना चाहकर भी कुछ न मैं कह पा रहा हूँ ,
        क्योंकि भावुक मन सभी की वेदना से दुख गया है ;
        देख लूँ तो चाँद नभ का भी उतर आये धरा पर ,
        किन्तु मेरी ग़लतियों से आज माथा झुक गया है ,

पूर्ण होकर भी , तुम्हारे बिन सदा ही मैं अधूरा ,
तुम नहीं हो , इसलिए ही प्राण हैं , काया नहीं है । । 

गीत प्राणों का अभी तक होंठ पर आया नहीं है । 
चाहता था मैं जिसे गाना , अभी गाया नहीं है । । 

                           - श्रीकृष्ण शर्मा 

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पुस्तक - '' फागुन के हस्ताक्षर ''  ,  पृष्ठ - 48, 49

sksharmakavitaye.blogspot.in
shrikrishnasharma.wordpress.com

सुनील कुमार शर्मा 
पी . जी . टी . ( इतिहास ) 
पुत्र –  स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय ,
पचपहाड़ , जिला – झालावाड़ , राजस्थान .
पिन कोड – 326512
फोन नम्बर - 9414771867

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