मैं विभोर हूँ प्राण !
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बन्द किये मैंने दरवाज़े हारकर ,
तभी प्राण , तुम आयीं मेरे द्वार पर !
दूरी की सारी सीमाएँ जीत लीं ,
किसी विहग के आकुल मन के गीत ने |
वर्तमान की धरती पर अब पग धरे ,
फिर से मेरे भूले हुए अतीत ने |
याद , नयन में सागर भर तुमने कहा -
' मेरी सुधि को रखना तनिक सँवार कर !
बन्द किये मैंने दरवाज़े हार कर ,
तभी प्राण , तुम आयीं मेरे द्वार पर
दिन - जैसे न लगाव रहा है छांह का ,
जो समीपता छोड़ साँझ को बढ़ चली |
खड़ी अपरिचय की रेखा पर किन्तु ये
उजली - उजली धूप साँवली पड़ चली |
किन्तु सान्ध्य - तारा की छाया - कृति बना ,
दिया जल रहा खण्डहर हुई माजर पर !
बन्द किये मैंने दरवाज़े हार कर ,
तभी प्राण , तुम आयीं मेरे द्वार पर |
प्राण , तुम्हारी साँसों की गरमी लगी ,
उड़ता था बेपंख समन्दर व्योम में |
हुआ तुम्हारे जीवित स्पर्शों से मिलन ,
कितने स्वर्ग बस गये थे हर रोम में |
वह सुहाग का चाँद , कुंआरी चाँदनी ,
तिरी तुम्हारे यौवन की मँझधार पर !
बन्द किये मैंने दरवाज़े हार कर ,
तभी प्राण , तुम आयीं मेरे द्वार पर |
दिन बेमालुम गया तुम्हारी याद में ,
गीत सुबह के मैंने गाये शाम को |
आज स्वयं में ही इतना डूबा हुआ ,
सुनता हूँ , पर समझ न पाता नाम को |
मैं विभोर हूँ , प्राण तुम्हारा स्नेह ले |
फूल खिलाता बैठा हुआ अंगार पर !
बन्द किये मैंने दरवाज़े हार कर ,
तभी प्राण , तुम आयीं मेरे द्वार पर !
- श्रीकृष्ण शर्मा
( कृपया इसे पढ़ कर अपने विचार अवश्य लिखें | आपके विचारों का स्वागत है| धन्यवाद | )
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पुस्तक - '' फागुन के हस्ताक्षर '' , पृष्ठ - 34, 35
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सुनील कुमार शर्मा
पी . जी . टी . ( इतिहास )
पुत्र – स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय ,
पचपहाड़ , जिला – झालावाड़ , राजस्थान .
पिन कोड – 326512
फोन नम्बर - 9414771867
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