कालिदास की आर्द्र व्यथा
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ग्रीष्म - यज्ञ के बाद मिला है वर्षा का वरदान ।
अम्बर एक समन्दर , जिसमें मेघों के जलयान ।
इस बदरौटी के मौसम से
शरमाती है घाम ,
पुरबा पूछ रही है
अपराधी लूओं का नाम ;
तपन उड़ गयी चिड़ियों - जैसी खा बूँदों के बान ।
अम्बर एक समन्दर , जिसमें मेघों के जलयान ।
दिन के घर में ब्याह ,
चँदोबा तान रही है साँझ ,
मेंढक चारों तरफ बजाते
अपनी - अपनी झाँझ ;
सजता किसी बाराती जैसा , हर बंजर - वीरान ।
अम्बर एक समन्दर ,जिसमें मेघों के जलयान ।
फूट पड़ी हरियाली
जैसे - हो बरखा का छन्द ,
किसी यक्ष का है सन्देशा
मेघ - पृष्ठ में बन्द ;
यह असाढ़ है , कालिदास की आद्र व्यथा का गान ।
अम्बर एक समन्दर , जिसमें मेघों के जलयान ।
यह सच है , बिजली बादल हैं ,
भीग रही है देह ,
बाहर कीचड़ - फिसलन ,
भीतर टपक रहा है गेह ;
कष्ट यही तो उपजायेंगे , यहाँ सुखों के धान ।
अम्बर एक समन्दर , जिसमें मेघों के जलयान ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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( रचनाकाल - 1960 ) , पुस्तक - '' फागुन के हस्ताक्षर '' , पृष्ठ - 54, 55
sksharmakavitaye.blogspot.in
shrikrishnasharma.wordpress.com
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ग्रीष्म - यज्ञ के बाद मिला है वर्षा का वरदान ।
अम्बर एक समन्दर , जिसमें मेघों के जलयान ।
इस बदरौटी के मौसम से
शरमाती है घाम ,
पुरबा पूछ रही है
अपराधी लूओं का नाम ;
तपन उड़ गयी चिड़ियों - जैसी खा बूँदों के बान ।
अम्बर एक समन्दर , जिसमें मेघों के जलयान ।
दिन के घर में ब्याह ,
चँदोबा तान रही है साँझ ,
मेंढक चारों तरफ बजाते
अपनी - अपनी झाँझ ;
सजता किसी बाराती जैसा , हर बंजर - वीरान ।
अम्बर एक समन्दर ,जिसमें मेघों के जलयान ।
फूट पड़ी हरियाली
जैसे - हो बरखा का छन्द ,
किसी यक्ष का है सन्देशा
मेघ - पृष्ठ में बन्द ;
यह असाढ़ है , कालिदास की आद्र व्यथा का गान ।
अम्बर एक समन्दर , जिसमें मेघों के जलयान ।
यह सच है , बिजली बादल हैं ,
भीग रही है देह ,
बाहर कीचड़ - फिसलन ,
भीतर टपक रहा है गेह ;
कष्ट यही तो उपजायेंगे , यहाँ सुखों के धान ।
अम्बर एक समन्दर , जिसमें मेघों के जलयान ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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( रचनाकाल - 1960 ) , पुस्तक - '' फागुन के हस्ताक्षर '' , पृष्ठ - 54, 55
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