साँस - साँस चलना भी दूभर अब !
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गीत तुम्हें गा - गाकर हार गये ! !
तुमको तो नहीं , किन्तु मधुवन को ,
भौरे ये रह -रह गुंजार गये !
गीत तुम्हें गा - गाकर हार गये ! !
विरल - विरल बिरवे ये ,दूरी पर
एक पाँति हुए , एक भाँति हुए ;
नदिया के ऊपर उस दिशि में वह
बना रहे नदी और भाप - धुएँ ;
इसी तरह मिले विवश होकर तुम ,
जब - जब भी निंदिया के पार गये
गीत तुम्हें गा - गाकर हार गये ! !
तरुण बतख़ सँभल - सँभल पग धरती ,
अंग - अंग में थिरकन - लचकन है ;
बगुला वह सेवारों पर बैठा ,
देने निज सपनों को जीवन है ;
कुछ कपोल फोनों के खम्भों पर
बैठे , जो पिया - देश तार गये !
गीत तुम्हें गा - गाकर हार गये ! !
ढेरों ये श्वेत - बैंजनी रंग के
आकों के फूल व्यर्थ खिलते हैं
झरबेरी के काँटों में उलझे ,
साड़ी के सूत व्यर्थ हिलते हैं ;
मधुऋतु बन खिला , सजा चंदा बन ,
व्यर्थ सभी लेकिन सिंगार गये !
गीत तुम्हें गा - गाकर हार गये ! !
अनजाने भ्रम की इन लहरों ने
आ - आकर मुझको भरमाया है ;
पेड़ों की बाँसुरियों ने बजकर
बरबस ही मन को भटकाया है ;
साँस - साँस चलना भी दूभर अब ,
प्राणों पर रख इतना भार गये !
गीत तुम्हें गा - गाकर हार गये ! !
- श्रीकृष्ण शर्मा
( कृपया इसे पढ़ कर अपने विचार अवश्य लिखें | आपके विचारों का स्वागत है| धन्यवाद | )
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पुस्तक - '' फागुन के हस्ताक्षर '' , पृष्ठ - 36, 37
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सुनील कुमार शर्मा
पी . जी . टी . ( इतिहास )
पुत्र – स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय ,
पचपहाड़ , जिला – झालावाड़ , राजस्थान .
पिन कोड – 326512
फोन नम्बर - 9414771867
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