Wednesday, September 9, 2015

पुस्तक ( गीत - संग्रह ) - '' बोल मेरे मौन '' से लिया गीत - '' मन की टहनी से उलझे ''









हिरन कुलाँचें भरता वन में ,
पाखी फुदक रहा फुनगी पर !
किन्तु करे क्या ह्रदय विचारा 
झुलस रहा सुधि की चिनगी पर ?

तिल - तिल कर दीपक जलता है ,
दिप - दिप कर जलते हैं तारे ,
घुट - घुट कर यह मन जलता है ,
प्राण , तुम्हारी सुधि के द्वारे !

चाँदी - जैसा ताजमहल है ,
सोने - सी सन्ध्या की काया । 
नीलम - वर्णी यमुना , लेकिन 
मन पत्थर जैसा पथराया !

नीमों हैं कच्ची निबौलियाँ ,
महुआ भरते मधु से प्याले । 
पर मन की टहनी से उलझे ,
सुधियों की मकड़ी के जाले । 


                             - श्रीकृष्ण शर्मा 

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पुस्तक - '' बोल मेरे मौन ''  ,  पृष्ठ - 52










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