दुख - दर्द लिये ओ गीतकार ,
तू अपनी मस्ती में खोया !!
तुझ पर हँसते जाते अभाव ,
डँस रहे उपेक्षा के तक्षक ,
तिल - तिल कर जलता जाता तू
अपने गीतों में भोर तलक ;
पतझर दरवाज़े खड़ा हुआ ,
खण्डहर पौली में अड़ा हुआ ,
पर अमृत अौरों को देकर ,
तूने खुद विष का घट ढोया !
दुख - दर्द लिये ओ गीतकार ,
तू अपनी मस्ती में खोया !!
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - '' बोल मेरे मौन '' , पृष्ठ - 66
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