दुख तो दुख है , मेरा हो अथवा तेरा !!
मेरा दुख क्या अलग ,
अलग क्या तेरा दुख ?
दुख की लिपि होती है
एक , सभी के मुख !
अलग न दुख का दंश ,
दर्द औ ' संवेदन ,
अलग नहीं होता
आँसुओं का खारीपन !
सच पूछो तो दुख जीवन की थाती है ,
दर्द सभी का , कवि की वाणी गाती है !
ठिठका हूँ मैं , जब - जब पीड़ा ने टेरा !
दुख तो दुख है , मेरा हो अथवा तेरा !!
- श्रीकृष्ण शर्मा
_____________________________
पुस्तक - '' बोल मेरे मौन '' , पृष्ठ - 46
sksharmakavitaye.blogspot.in
shrikrishnasharma.wordpress.com
No comments:
Post a Comment