सपना जो पाले थे , टूट गया । ।
भुरहारे क्षितिज हुआ अरुणीला ,
टीले आ बैठ गया सूरज ,
दिन ने घर के बाहर पाँव धरे ,
अपने अंधे अतीत को तज ;
किन्तु धूप में आँखें चुँधियाई ,
सही राह अगलों ने अलगाई ,
लक्ष्य - भ्रष्ट होकर शर छूट गया ,
उफ़ , अमृत - घट गिर कर फूट गया ।
सपना जो पाले थे , टूट गया । ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - '' बोल मेरे मौन '' , पृष्ठ - 63
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