ढाकवनी में आग लगी है । ।
जाने कब की दबी हुई यह ,
चिनगारी वन में सुलगी है ?
ढाकवनी में आग लगी है । ।
लाल - लाल लपटें ही लपटें ,
पवन - झकोरों में लगती है
ज्वाला लेती हुई करवटें ;
रक्त - कमल खिलते शाखों पर ,
सुर्ख अग्नि के फूल दहकते
बुझे - बुझे - से इन ढाकों पर ;
लगता हर तरु पर सन्ध्या की
लाल - लाल ओढ़नी टँगी है ।
ढाकवनी में आग लगी है । ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - '' बोल मेरे मौन '' , पृष्ठ - 53
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