छेड़ो मत , अपनी ही पीड़ा में खोया जो ,
फूट पड़ेगा , चुप है , अभी - अभी सोया जो । ।
क्षत - विक्षत जो कि हुआ
सुबह के लिए लड़कर ,
उसकी ही काया पर
लिपटे सौ - सौ विषधर ,
जिनको काँधे लेकर
शाही सम्मान दिया ,
पीते हैं वही रक्त
अब पिशाच सिर चढ़कर ;
पर उनको एक दिवस चखना ही होगा वो ,
उनने इस धरती में कालकूट बोया जो ।
छेड़ो मत , अपनी ही पीड़ा में खोया जो ,
फूट पड़ेगा , चुप है , अभी - अभी सोया जो । ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
_______________________________
पुस्तक - '' बोल मेरे मौन '' , पृष्ठ - 76
shrikrishnasharma.wordpress.com
No comments:
Post a Comment