गुमसुम - सी है शाम
और ये चुप - चुप पेड़ खड़े ।
दहक - दहक कर सूर्य
कोयला होता चला गया ,
भरकर तेज उड़ान
घौंसले लौटी अभी बया ।
पीछे दुष्ट पिशाच
अँधेरे का जादू काला ,
डब - डब आँखों ज्योति
देखती घायल उजियाला ।
बड़ी अनमनी हवा ,
कि सन्नाटे से कौन लड़े ?
गुमसुम - सी है शाम
और ये चुप - चुप पेड़ खड़े ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - '' बोल मेरे मौन '' , पृष्ठ - 58
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