पुरबा के संग - साथ ,
दौड़ रहे मृगछौने ।
विन्ध्य के शिखर से चल
घाटी में ये आते ,
जंगल से बस्ती तक
दल के दल सुस्ताते ;
प्यासे तरु - सरि - प्राणी ,
करने को अगवानी ;
मुँह फाड़े ताक रहे ,
इनका पथ हर कोने ।
पुरबा के संग - साथ ,
दौड़ रहे मृगछौने ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - बोल मेरे मौन '' , पृष्ठ - 49
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