सपने तो सपने होते हैं । ।
फिर हम सब क्यों उनकी खातिर ,
हँसते हैं अथवा रोते हैं ?
सपने तो सपने होते हैं । ।
इनकी काया बड़ी सलोनी ,
इनमें मायावी अनहोनी
निंदिया के ये पुत्र , जागरण
के संग इनकी साँसें खोनी ;
झूठे होकर भी ये सच हैं ,
सच होकर भी हैं ये झूठे ,
ये अभाव को भाव बनाते ,
रचते आँसुओं से फुलबूटे ;
इसीलिए तो अपनों से भी
ये ज्यादा अपने होते हैं ,
और टूट जाने पर इनके
हम बच्चों - जैसे रोते हैं ।
सपने तो सपने होते हैं । ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - '' बोल मेरे मौन '' , पृष्ठ - 65
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