रात के कुरूपा चेहरे पर
आवरण सुनहरा डाल दिया ,
किसने सूरज को गेंद बना
इस तम के बीच उछाल दिया ?
पेड़ों के हाथ दिये किसने
रुमाल अनेकों रंगों के ?
हँसकर किसने ये साँसों का
दीपक प्राणों में बाल दिया ?
किसने काया को रूप दिया ,
मदिरा दी मादक यौवन को ?
किसने जिन्दगी नाम लिख दी
लाचार अभागे रज - कण को ?
जो हो , वह कारक का कारक ,
वह है अनादि , अविनाशी है ,
आओ , हम उसको नमन करें ,
जो हर घट - घट का वासी है !
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - '' बोल मेरे मौन '' , पृष्ठ - 45
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