चमक रहे अम्बर में तारे । ।
लेकिन अँधियारा धरती के ,
करके बैठा बन्द किवारे ।
चमक रहे अम्बर में तारे । ।
दिन भर सूरज सिर पर ढोया ,
दिन भर खून - पसीना बोया ,
थका और हारा आधा जग ,
निंदिया की बाँहों में खोया ;
पर अपरूप सुघरता वाले ,
मोहक , सुखप्रद और निराले ,
इस मन के आँगन में किसने
ये सपनीले यान उतारे ?
चमक रहे अम्बर में तारे । ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - '' बोल मेरे मौन '' , पृष्ठ - 60
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