( सन्दर्भ : 22 मई 1997 को प्रातः 4.20 पर जबलपुर में आया भूकम्प )
थी आधी रात ढली , सहसा कोहराम मचा ।
शिव ने रेवा तट पर आ ताण्डव नृत्य रचा । ।
पग - आघातों से ये धरती काँपी - डोली ।
प्रलयंकर ने अपनी तीसरी आँख खोली । ।
भूगर्भ गड़गड़ाहट धड़ - धड़ से भरा हुआ ।
आतंक और भय से हर प्राणी भरा हुआ । ।
धरती की छाती फटी कि पत्थर तक पिघले ।
अनगिनत प्रसिद्ध ठिये इस दानव ने निगले । ।
ताण्डव में दीवारें दरकीं , घर भग्न हुए ।
कुछ बचे हुए आहत कुछ मृत्यु - निमग्न हुए । ।
जो अपनों से बिछुड़े वे अपनों को रोते ।
अपनों का शोक , सिर्फ क्या अपने ही ढोते ?
उफ़ , विधना , ये विनाश की कैसी लीला है ?
मानव - कर्मों का दण्ड दुखद - दर्दीला है । ।
ऐसी विपदा में अपने से बाहर आओ ।
बुद्धि से काम लो , जन - सेवा में जुट जाओ । ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - '' अँधेरा बढ़ रहा है '' , पृष्ठ - 36
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सुनील कुमार शर्मा
पुत्र – स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा ,
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