चाँदनी की देह
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भोर का पीकर जहर अब चाँदनी की
देह नीली पड़ रही है।
टल गया है वह मुहूरत , जबकि पड़तीं
भाँवरें कुण्ठित सुखों की
इसलिए ही चुप हुआ है झिल्लियों के घर
पुरोहित मंत्र पढ़ता ;
क्या करे अभिनीत कोई और अभिनय
जब किसी ने है गिरा दी ,
मधुर सपनों की सुघर रंगस्थली के
सुखद दृश्यों पर यवनिका ;
घट गयी घटना यहाँ पर जो अचानक ,
है उसी की ओस साक्षी ,
और जिसकी याद करके साँस लम्बी
अब लगीं चलने हवा की ;
रात के अपराध पर अब तारिकाएँ
आत्महत्या कर रही हैं।
भोर का पीकर जहर अब चाँदनी की
देह नीली पड़ रही है।
- श्रीकृष्ण शर्मा
( कृपया इसे पढ़ कर अपने विचार अवश्य लिखें | आपके विचारों का स्वागत है| धन्यवाद | )
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पुस्तक - '' फागुन के हस्ताक्षर '' , पृष्ठ - 25
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सुनील कुमार शर्मा
पी . जी . टी . ( इतिहास )
पुत्र – स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय ,
पचपहाड़ , जिला – झालावाड़ , राजस्थान .
पिन कोड – 326512
फोन नम्बर - 9414771867
अद्भुत रचना!!
ReplyDeleteधन्यवाद उड़न तश्तरी जी |
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