मौसम की असामान्य शर्तों से भौचक्के ,
कैसे हम वक्त के प्रवाह में बहें ?
रोज - रोज की वह ही बेमानी दिनचर्या ,
वही - वही जड़े हुए दृश्य और तस्वीरें ,
वही - वही है चुभन करौंदों के काँटों की ,
कमोबेश वही - वही नाजायज़ जंजीरें ,
पथरीली भीड़ की निरन्तरता में चुकते ,
कैसे हम संवादी स्वर उछाल कर कहें ?
मौसम की असामान्य शर्तों से भौचक्के ,
कैसे हम वक्त के प्रवाह में बहें ?
उम्र बढ़ रही जैसे - जैसे इस पोथी की ,
कागज़ के पन्नों का जीवन काम हो रहा ,
कोयलों की अनसूझी औ ' गीली खानों में ,
जल - जल कर मेहनतकश जीवन तम ढो रहा ,
सूर्यमुखी जीवित क्षण चौरस्ते दफना कर ,
कैसे हम जश्न के मज़ाक को सहें ?
मौसम की असामान्य शर्तों से भौचक्के ,
कैसे हम वक्त के प्रवाह में बहें ?
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - '' अँधेरा बढ़ रहा है '' , पृष्ठ - 45
कृपया इस नवगीत को पढ़ कर अपने विचार अवश्य लिखें | आपके विचारों का स्वागत है | धन्यवाद |
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सुनील कुमार शर्मा
पुत्र – स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय ,
पचपहाड़ , जिला – झालावाड़ , राजस्थान .
पिन कोड – 326512
फोन नम्बर - 9414771867
बेहतरीन.... आप को नववर्ष की शुभकामनाएं....
ReplyDeleteआपने ये रचना पसंद की , इसके लिए बहुत - बहुत धन्यवाद |आपको भी नव वर्ष की मंगल कामनाएँ |
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