Saturday, January 2, 2016

'' स्वर उछाल कर कहें '' नामक नवगीत , स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत संग्रह - '' अँधेरा बढ़ रहा है '' से लिया गया है -









मौसम की असामान्य शर्तों से भौचक्के ,
कैसे हम वक्त के प्रवाह में बहें ?

रोज - रोज की वह ही बेमानी दिनचर्या ,
वही - वही जड़े हुए दृश्य और तस्वीरें ,
वही - वही है चुभन करौंदों के काँटों की ,
कमोबेश वही - वही नाजायज़ जंजीरें ,
            पथरीली भीड़ की निरन्तरता में चुकते ,
            कैसे हम संवादी स्वर उछाल कर कहें ?
            मौसम की असामान्य शर्तों से भौचक्के ,
            कैसे हम वक्त के प्रवाह में बहें ?

उम्र बढ़ रही जैसे - जैसे इस पोथी की ,
कागज़ के पन्नों का जीवन काम हो रहा ,
कोयलों की अनसूझी औ ' गीली खानों में ,
जल - जल कर मेहनतकश जीवन तम ढो रहा ,
            सूर्यमुखी जीवित क्षण चौरस्ते दफना कर ,
            कैसे हम जश्न के मज़ाक को सहें ?
            मौसम की असामान्य शर्तों से भौचक्के ,
            कैसे हम वक्त के प्रवाह में बहें ?


                                         - श्रीकृष्ण शर्मा 

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पुस्तक - '' अँधेरा बढ़ रहा है ''  ,  पृष्ठ - 45


कृपया इस नवगीत को  पढ़ कर अपने विचार अवश्य लिखें | आपके विचारों का स्वागत है | धन्यवाद |

sksharmakavitaye.blogspot.in
shrikrishnasharma.wordpress.com

सुनील कुमार शर्मा  
पुत्र –  स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय ,
पचपहाड़ , जिला – झालावाड़ , राजस्थान .
पिन कोड – 326512
फोन नम्बर - 9414771867

3 comments:

  1. बेहतरीन.... आप को नववर्ष की शुभकामनाएं....

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  2. आपने ये रचना पसंद की , इसके लिए बहुत - बहुत धन्यवाद |आपको भी नव वर्ष की मंगल कामनाएँ |

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