कुछ दिनों पहले जलाये
दीप हमने ढेर सारे ,
रोशनी से भर गये थे
घर गली छज्जे दुआरे ।
किन्तु वह सब रात भर का था ,
सच कहें तो बात भर का था ।
ज़िन्दगी के सँग सुबह की
चूड़ियाँ जब कुनमुनायीं ,
जब कि पूरव के क्षितिज पर
धूप चढ़ कर गुनगुनायी
बुझ गये वे दीप जिनने
रात भर अँधियार झेले ,
जो कि निशि के राज्य में भी
सिर उठा कर थे अकेले ।
जो गला कर नेह अपना ,
काँपती साँसें जला कर ,
दे रहे थे जो उजाला ,
सिर्फ कज्जल - धूम्र पाकर ।
उन दियों ने अन्त में
निज प्राण त्यागे ,
सूर्य के इस देश में
दीपक अभागे ।
सब अँधेरे में अचानक खो गया है ,
आज यह इंसान को क्या हो गया है ?
क्या कहें ?
सच तो यही है -
जो जले ,
जिनने उजाला भी दिया ,
अँधियार में हैं ।
देश की ख़ातिर
जिये औ ' मरे जो ,
उन सब शहीदों की शहादत की कथाएँ
विस्मरण के गार में है ।
स्वेद जिसका
जिन्दगी के मोतियों को आब देता ,
वही हलधर ,
साँस लेता पतझरों में ।
कर्म जिसका
सभ्यता को सूर्य - जैसी ताव देता ,
उस भगीरथ की बसी दुनिया
उजड़ते और ढहते खँडहरों में ।
पर ,
मुखौटे बाँध
सत्ता में विषैले नाग बैठे ।
और पूजाघरों में
बहुरूपिये रख आग बैठे ।
स्वार्थान्ध कुबेर
लक्ष्मी स्याह कर दासी बनाये ।
रक्त - प्यासे भेड़िये
हर भेड़ पर आँखें गड़ाये ।
जिन्दगी
लाचार औ ' बेबस खड़ी ,
हैवानियत हँसती ।
बढ़ रही हर चीज़ की क़ीमत ,
मगर इंसानियत सस्ती ।
इसी से यह ग़रीबी , भुखमरी , बेरोजगारी है ,
कफ़न को नोंचने तक की बनी नीयत हमारी है ।
मगर अब भी
अँधेरे के लिए दीपक न बन पाये ,
नहीं इंसानियत के दर्द से अब भी पिघल पाये ,
पतन की इन्तेहा यह देश को बदनाम कर देगी ,
ये हालत हम सभी को विश्व में गुमनाम कर देगी ।
अँधेरा
बाहरी हो
या कि हो भीतर ,
हमें गुमराह करता है ,
कि हो इंसान कैसा भी
अँधेरे से सदा वह डरा करता है ।
इसी से -
है तुम्हें सौगन्ध माटी की ,
- नहीं सोना ,
- जगे रहना ,
- कि अपने ग़लत कामों से
कभी बनना नहीं बौना ,
- अँधेरे में नहीं खोना ।
इसी से -
एक दिन केवल दिवाली को
जलाना दीपकों का है नहीं काफी ,
जलो खुद , दूसरों को भी उजाला दो ,
- यही अब रह गयी है राह बस बाकी ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - अँधेरा बढ़ रहा है '' , पृष्ठ - 91, 92 , 93 , 94
सुनील कुमार शर्मा
पुत्र – स्व. श्रीकृष्ण शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय ,
पचपहाड़ , जिला – झालावाड़ , राजस्थान .
पिन कोड – 326512
फोन नम्बर - 9414771867
facts sir ji very fine.
ReplyDeleteधन्यवाद सुशील जी |
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ReplyDeleteधन्यवाद सुशील जी |
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