Sunday, June 28, 2015

बुझना मत !










बुझना मत !
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दुविधा में रहना मत !

टूटेगी मावस की 
कभी न 
कंक्रीट छत !

कोयले की खानों में 
सूर्य नहीं आयेगा ,
पहचानों को 
अन्धा तिमिर 
लील जायेगा ;
बुझना मत ,
साँसों की लपटें 
रखना अक्षत !

दुविधा में रहना मत !

                            - श्रीकृष्ण शर्मा 
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पुस्तक - '' एक नदी कोलाहल ''  ,  पृष्ठ - 72












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3 comments:

  1. सच कहा सर आप ने दुविधा का ताना वाना बहुत सुदृन है बहुत कुछ कहती आप की रचना ।

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  2. धन्यवाद कल्पना जी |

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  3. धन्यवाद कल्पना जी |

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