Sunday, June 21, 2015

क्या भला होगा ?










क्या भला होगा ?
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अग्नि - पथ में 
सिर झुकाकर बैठने से ,
क्या भला होगा ?

है पता ठोकर लगी है पाँव को ,
रिस रहा है ख़ून ,
घिसता दर्द भी तो घाव को ;
किन्तु यों 
विष - सर्प सिर्फ समेटने से ,
क्या भला होगा ?

बड़ी असहज 
ज्योंकि दुर्वासा - हताशा है ,
यों अधीरज से 
खुलेगा एक भी इसका न गाँसा है ;
सब्र करके देख ,
इस गल - घोंटने से ,
क्या भला होगा ?

ख़ून है तो 
तिलक - जैसा 
माथ पर ले - ले ,
आग है तो 
आरती - सी 
हाथ पर ले - ले ;
दायरे में 
व्यर्थ चुप - चुप ऐंठने से ,
क्या भला होगा ?

                                  - श्रीकृष्ण शर्मा 

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पुस्तक - '' एक नदी कोलाहल ''  ,  पृष्ठ - 68












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