Monday, June 22, 2015

आदमी क्या ?










आदमी क्या ?
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कौन कहता है 
कि छोटा या बड़ा है ,
आदमी केवल तराजू का धड़ा है । 

बह रही है चेतना 
नस - नाड़ियों में ,
ज़िन्दगी है 
देह के इन वनों में 
घाटी , शिखर व पहाड़ियों में ;
आदमी क्या ?
हड्डियों का एक ढाँचा है ,
कि  जिस पर खोल चमड़े का चढ़ा है 
किन्तु भीतर 
दर्द को महसूसता एक दिल जड़ा है । 

थाहता सागर ,
करों में व्योम थामे ,
बाढ़ - आँधी - बिजलियाँ 
लिक्खी गयीं जिसके कि  नामे ;
आदमी क्या ?
मुश्किलों से लड़ रहा है ,
गढ़ रहा है एक दुनियाँ  ,
और अपने पॉव रख जो 
मौत के सिर पर खड़ा है ।  

                             - श्रीकृष्ण शर्मा 

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पुस्तक - '' एक नदी कोलाहल ''  ,  पृष्ठ - 69












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