फ़ेहरिस्त लम्बी अभावों की : आदमी
-----------------------------------------
सिर्फ़ एक फ़ेहरिस्त लम्बी
अब अभावों की ,
बन गया ज्यों बददुआ है
- आदमी ।
अब पहाड़ों - सा खड़ा है
दर्द सीने पर ,
कर्ज़ बढ़ता जा रहा
हर दिन पसीने पर :
जी रहा है ज़िन्दगी
अब बस दबावों की ,
रखा काँधे पर जुआ है
- आदमी ।
जानता है
किन्तु जो मजबूरियाँ ओढ़े ,
यदि न हो
तो हर ज़रूरत को सहज छोड़े ;
किन्तु मन - बहलाब को
गाथा भुलावों की ,
सिर्फ़ दुहराता सुआ है
- आदमी ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
________________________
पुस्तक - '' एक नदी कोलाहल '' , पृष्ठ - 64
sksharmakavitaye.blogspot.in
shrikrishnasharma.wordpress.com
No comments:
Post a Comment