बुझना मत !
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दुविधा में रहना मत !
टूटेगी मावस की
कभी न
कंक्रीट छत !
कोयले की खानों में
सूर्य नहीं आयेगा ,
पहचानों को
अन्धा तिमिर
लील जायेगा ;
बुझना मत ,
साँसों की लपटें
रखना अक्षत !
दुविधा में रहना मत !
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - '' एक नदी कोलाहल '' , पृष्ठ - 72
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सच कहा सर आप ने दुविधा का ताना वाना बहुत सुदृन है बहुत कुछ कहती आप की रचना ।
ReplyDeleteधन्यवाद कल्पना जी |
ReplyDeleteधन्यवाद कल्पना जी |
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