दिशा अपनी बदल कर आज इस मैदान में आयीं ,
सृजन के तेवरों को देखकर सहमी हवाएँ !
बहुत सूरज जला था औ ' तपी थी खूब यह धरती ,
बहुत ही सिन्धु खौला था , गगन में बदलियाँ छायीं ,
मगर जाने कहाँ जाकर उन्होंने घट किया खाली ,
कि प्यासी भूमि के हिस्से न मधु की बूँद तक आयी ,
कि पाया तृप्ति का आशीष लेकिन मरुथलों ने जब ,
बरसने को उमड़ कर आ रहीं बहकी घटाएँ !
दिशा अपनी बदल कर आज इस मैदान में आयीं ,
सृजन के तेवरों को देखकर सहमी हवाएँ !
युगों से पाण्डवों की भाँति निर्वासित रहे सुख से ,
भटकते पेट की खातिर रहे गुमनाम बस्ती में ,
दहक कर बुझ गये जिनके सुलगते स्वप्न तारों - से ,
किन्हीं चिमनी - घरों के धूम्र की रंगीन मस्ती में ,
उन्हीं द्वारों रुपहली चन्द्र किरणों की रुकी डोली ,
उजाले से भरी हैं आज फिर अन्धी गुफ़ाएँ !
दिशा अपनी बदल कर आज इस मैदान में आयीं ,
सृजन के तेवरों को देखकर सहमी हवाएँ !
पहुँच तो थी न , फिर भी डगमगाते पाँव चलती थी ,
गरीबी इन्द्रधनुषों से बुनी वह चूनरी पाने ,
बनाया था सितारों का महल जिसने वही मेहनत ,
तरसती ही रही थी चाँद वाली मूँदरी पाने ,
कि जो कमजोर कन्धों पर पहाड़ों को उठाये हैं ,
उन्हीं के ऊर्जस्वित व्यक्तित्व पर अर्पित ऋचाएँ !
दिशा अपनी बदल कर आज इस मैदान में आयीं ,
सृजन के तेवरों को देखकर सहमी हवाएँ !
*
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - '' अँधेरा बढ़ रहा है '' , पृष्ठ - 46 , 47
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सुनील कुमार शर्मा
पुत्र – स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय ,
पचपहाड़ , जिला – झालावाड़ , राजस्थान .
पिन कोड – 326512
फोन नम्बर - 9414771867
सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार....
धन्यवाद जीवान्तिप्स | मैं आपके ब्लॉकपर रचनाएँ जरुर भेजूंगा |
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