हम शहर के हैं ,
मगर हम
बन नहीं पाये शहर के ।
शहर में जन्मे ,
शहर में पले हैं हम
औ ' बढ़े हैं
किन्तु अब दिखते न
पहले की तरह से
दिल बड़े हैं ,
जब कि
गैरों को समझते लोग
अपने गाँव - घर के ।
मन हमारा
बर्फ जैसा सर्द
अब तक हो न पाया ,
पत्थरों के इस शहर में
आँसुओं को बो न पाया ,
दर्द किसका कौन देखे ,
आईने सब यहाँ दरके ।
फाड़ते
आकाश का दिल ,
प्रेत - जैसे भवन ऊँचे ,
भीड़ के सैलाब में
डूबीं सड़क औ ' गली - कूँचे ,
धुँआ साँसों ,
शोर से बेदम बदन
हो चले स्वर के ।
ज्ञान औ ' विज्ञान की
काया बनी ,
माया शहर की ,
स्वार्थ , छल , बल ,
अर्थ - केन्द्रित ,
हर जगह गाथा जहर की ,
व्यक्ति की पहचान ग़ुम ,
घेरे अकेलापन पसर के ।
नित - नयी अफवाह उड़ती ,
उलट बहती हैं हवाएँ ,
है न सूत - कपास ,
पर
सब ही यहाँ डंडे घुमाएँ ,
यंत्र जैसी ज़िन्दगी ही
साथ में है ,
हर बसर के ।
है समय विपरीत ,
लेकिन
मुश्किलें सब ओढनी हैं ,
ज़िन्दगी की टूटती लय ,
हर तरह से जोड़नी है ,
घाव के
मरहम बनें हम ,
अग्नि - सर की हर लहर के ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - '' अँधेरा बढ़ रहा है '' , पृष्ठ - 51 , 52 , 53
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सुनील कुमार शर्मा
पुत्र – स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय ,
पचपहाड़ , जिला – झालावाड़ , राजस्थान .
पिन कोड – 326512
फोन नम्बर - 9414771867
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