पीड़ा ही पीड़ा से पूरित धाम ।
कैसे मिल पायेगा , सुख हे राम ?
जीवन की यह सन्ध्या , फूले काश ।
सिन्दूरी हो जाये , सब आकाश । ।
मुश्किल से जोड़ा जो , काठ - कवार ।
छाती पर लादोगे , कब तक भार ?
जीवन एक पहेली , दुश्वार ।
सहज - सहज जो बुझैँ , उतरें पार । ।
पूर्व जन्म के ऋण का , भारी बोझ ।
चुका रहे हम जिसको मर कर रोज़ । ।
मायावी नगरी का कौन मुकाम ?
गड्डमड्ड सब चेहरे , सुधि औ ' नाम । ।
डूब रहीं संज्ञाएँ , तम के ज्वार ।
उजियारा देता हर रूपाकार । ।
सौ सुख ने बिसराया , जलता जेठ ।
पर असह्य है दुख की , एक चपेट । ।
धन के पीछे पागल , जग बेहाल ।
जठर माँगता केवल रोटी - दाल । ।
प्यार लिये सौ खुशबू , सारे रंग ।
प्यार बिना जग सूना औ ' बेरंग । ।
भले अकेले या हो कोई साथ ।
घेरे खड़ी हुई है सुधि दिन - रात । ।
दिन के घर में तम के फैले पाँव ।
बदली से आशीषित सारा गाँव । ।
निर्धनता गाली है , है ये शाप ।
केन्द्रित एक बिन्दु पर , ज्यों सब ताप । ।
आज सभी के मन में बैठा साँप ।
प्रगट किसी का , कोई रखता ढाँप । ।
खड़ी ' यार्ड ' में ही है , हो निरुपाय ।
माथे की वह बिन्दी , ' हिन्दी ' हाय !!
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - '' अँधेरा बढ़ रहा है '' , पृष्ठ - 99 , 100
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सुनील कुमार शर्मा
पुत्र – स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय ,
पचपहाड़ , जिला – झालावाड़ , राजस्थान .
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