Friday, December 25, 2015

'' मन में साँप '' नामक बरवै , कवि श्री श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत संग्रह - '' अँधेरा बढ़ रहा है '' से लिया गया है -









पीड़ा ही पीड़ा से पूरित धाम । 
कैसे मिल पायेगा , सुख हे राम ?

            जीवन की यह सन्ध्या , फूले काश । 
            सिन्दूरी हो जाये , सब आकाश । । 

मुश्किल से जोड़ा जो , काठ - कवार । 
छाती पर लादोगे , कब तक भार ?

            जीवन एक पहेली , दुश्वार । 
            सहज - सहज जो बुझैँ , उतरें पार । । 

पूर्व जन्म के ऋण का , भारी बोझ । 
चुका रहे हम जिसको मर कर रोज़ । । 

            मायावी नगरी का कौन मुकाम ?
            गड्डमड्ड सब चेहरे , सुधि औ ' नाम । । 

डूब रहीं संज्ञाएँ , तम के ज्वार । 
उजियारा देता हर रूपाकार । । 

            सौ सुख ने बिसराया , जलता जेठ । 
            पर  असह्य है दुख की , एक चपेट । । 

धन के पीछे पागल , जग बेहाल । 
जठर माँगता केवल रोटी - दाल । । 

            प्यार लिये सौ खुशबू , सारे रंग । 
            प्यार बिना जग सूना औ ' बेरंग । । 

भले अकेले या हो कोई साथ । 
घेरे खड़ी हुई है सुधि दिन - रात । । 

            दिन के घर में तम के फैले पाँव । 
            बदली से आशीषित सारा गाँव । । 

निर्धनता गाली है , है ये शाप । 
केन्द्रित एक बिन्दु पर , ज्यों सब ताप । । 

            आज सभी के मन में बैठा साँप । 
            प्रगट किसी का , कोई रखता ढाँप । । 

खड़ी ' यार्ड ' में ही है , हो निरुपाय । 
माथे की वह बिन्दी , ' हिन्दी ' हाय !!


                      - श्रीकृष्ण शर्मा 
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पुस्तक - '' अँधेरा बढ़ रहा है ''  ,  पृष्ठ - 99 , 100

sksharmakavitaye.blogspot.in
shrikrishnasharma.wordpress.com

सुनील कुमार शर्मा  
पुत्र –  स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय ,
पचपहाड़ , जिला – झालावाड़ , राजस्थान .
पिन कोड – 326512
फोन नम्बर - 9414771867


  

2 comments:

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