आँसू तो आँसू हैं ,
निकल ही पड़ते हैं।
वैसे ये
पानी हैं ,
फिर भी ये मानी हैं ,
तुच्छ समझने पर ,
भीतर तक गड़ते हैं।
आँसू तो आँसू हैं ,
निकल ही पड़ते हैं।
मोती हैं ,
फूल हैं ,
इन्द्रधनुष कहीं ,
कहीं धूल हैं ,
दुःखों को सहते हैं ,
सुख से झगड़ते हैं
आँसू तो आँसू हैं ,
निकल ही पड़ते हैं।
- श्रीकृष्ण शर्मा
( कृपया इसे पढ़ कर अपने विचार अवश्य लिखें | आपके विचारों का स्वागत है| धन्यवाद | )
__________________
पुस्तक - '' अँधेरा बढ़ रहा है '' , पृष्ठ - 42
sksharmakavitaye.blogspot.in
shrikrishnasharma.wordpress.com
सुनील कुमार शर्मा
पी . जी . टी . ( इतिहास )
पुत्र – स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय ,
पचपहाड़ , जिला – झालावाड़ , राजस्थान .
पिन कोड – 326512
फोन नम्बर - 9414771867
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (07-02-2016) को "हँसता हरसिंगार" (चर्चा अंक-2245) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद मयंक जी |
ReplyDeleteधन्यवाद मयंक जी |
ReplyDelete