हरसिंगार सबके सब मुरझाते चले गये !!
समय के धुँधलके में -
ममता के चेहरे सब धुँधलाते चले गये
हरसिंगार सबके सब मुरझाते चले गये !!
देहरी से बाहर
उस मधुऋतु के आने की
छाया - भर छूट गयी ,
मन में ही घुट - घुट कर
सुख की दो - चार बची
साँसें भी टूट गयीं ,
और अन्त में
मुझको आकर उपलब्ध हुई
आँच बस व्यथाओं की ,
जिसको कितने अभाव दहकाते चले गये !
हरसिंगार सबके सब मुरझाते चले गये !!
अब भी
स्मृति है मुझको
थे कितने प्यारे क्षण ,
कितने वे हिले - मिले
पर कितने न्यारे क्षण ,
जिनमें कुछ ऐसे भी
सहयात्री मिले मुझे -
पहचाने होकर
जो अनजाने बने रहे ,
अनजाने थे
पर पहचाने - से भावों को दुहराते चले गये !
हरसिंगार सबके सब मुरझाते चले गये !!
तब से अब तक
बिछुड़ी दमयन्ती - सी सुबहें ,
साँप - साँप करतीं - सी
उफ़ , सामन्ती घामें ,
रातों के रंग - राती
बुझे लौह - सी शामें ,
आ - आ कर
मेरे उस बीते का सुख ढाते चले गये !
हरसिंगार सबके सब मुरझाते चले गये !!
अब मेरे सम्मुख है
नरभक्षी सूनापन ,
शेष बचा है केवल
टूटा तन ,
हारा मन ,
मेरे सब स्वप्न
अहम् हारे ,
हो नत - मस्तक
अन्तहीन सीमा को अँधराते चले गये !
हरसिंगार सबके सब मुरझाते चले गये !!
- श्रीकृष्ण शर्मा
( कृपया इसे पढ़ कर अपने विचार अवश्य लिखें | आपके विचारों का स्वागत है| धन्यवाद | )
________________________
पुस्तक - '' एक अक्षर और '' , पृष्ठ - 69 , 70
sksharmakavitaye.blogspot.in
shrikrishnasharma.wordpress.com
सुनील कुमार शर्मा
पी . जी . टी . ( इतिहास )
पुत्र – स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय ,
पचपहाड़ , जिला – झालावाड़ , राजस्थान .
पिन कोड – 326512
फोन नम्बर - 9414771867
सार्थक व प्रशंसनीय रचना...
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है।