Friday, May 1, 2015

अवशता










अवशता 
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( ओम प्रभाकर के एक गीत की शीर्ष पंक्तियों से प्रेरित )

क्या करें ,
कहाँ जायें ?

सूरज तो चला गया 
संध्या के संग ,
किसका अब साथ करें ?
दृष्टि यहाँ बैठी 
निस्संग ;

आँखों पर 
अँधियारा कब तक उठायें ?

अनपेक्षित ध्वनियों का 
क्या है अस्तित्व ?
आदमी प्रसुप्त 
… और... 
मृत है अपनत्व ;

ऐसे में 
आस्था को कब तक जगायें ?

                    - श्रीकृष्ण शर्मा 

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पुस्तक - '' एक नदी कोलाहल ''  ,  पृष्ठ - 58









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