अवशता
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( ओम प्रभाकर के एक गीत की शीर्ष पंक्तियों से प्रेरित )
क्या करें ,
कहाँ जायें ?
सूरज तो चला गया
संध्या के संग ,
किसका अब साथ करें ?
दृष्टि यहाँ बैठी
निस्संग ;
आँखों पर
अँधियारा कब तक उठायें ?
अनपेक्षित ध्वनियों का
क्या है अस्तित्व ?
आदमी प्रसुप्त
… और...
मृत है अपनत्व ;
ऐसे में
आस्था को कब तक जगायें ?
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - '' एक नदी कोलाहल '' , पृष्ठ - 58
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