अँधियारे की अंधी चुनौती
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अँधियारा ,
अँधियारा , अँधियारा है ,
इस तम में
हर कोई बेचारा है ।
घर से कैसे
कोई बाहर निकले ?
अंधड़ में बुझे
सभी दीपक उजले ;
है बनी हर तरफ
खुद - व - खुद कारा है ।
सन्ध्या के संग
चहल - पहल थम गयी ,
किरणों की पगडंडी एक
गुम गयी ;
फिर भी
कुछ कहते हैं भिनसारा है ।
कोई तो
आगे आ ललकारेगा ,
अंधी चुनौती को
स्वीकारेगा ;
हाथों धरेगा
जो अंगारा है ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - '' एक नदी कोलाहल '' , पृष्ठ - 61
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