हुए अपरिचित हम
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इस सन्ध्या के तम में
हुए अपरिचित हम ।
अपने लिए निरर्थक ,
अपने ही उपक्रम ।
तर्क खड़े हैं तनकर ,
बहसें आग लिए ,
छूँछे शब्द गरजते
होठों झाग लिये ;
दुर्गन्धित बातों से ,
प्रदूषिता सरगम ।
रिश्तों की गरमाहट
महज़ दिखावा है ,
फूल - हँसी मौसम का
सिर्फ़ छलावा है ;
अहसासों पर भारी ,
स्वार्थ और दिरहम *
( * दिरहम : संयुक्त अरब अमीरात की मुद्रा )
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - '' एक नदी कोलाहल '' , पृष्ठ - 59
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