Saturday, May 2, 2015

हुए अपरिचित हम










हुए अपरिचित हम 
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इस सन्ध्या के तम में 
हुए अपरिचित हम । 
अपने लिए निरर्थक ,
अपने ही उपक्रम । 

तर्क खड़े हैं तनकर ,
बहसें आग लिए ,
छूँछे शब्द गरजते 
होठों झाग लिये ;

दुर्गन्धित बातों से ,
प्रदूषिता सरगम । 

रिश्तों की गरमाहट 
महज़ दिखावा है ,
फूल - हँसी मौसम का 
सिर्फ़ छलावा है ;

अहसासों पर भारी ,
स्वार्थ और दिरहम *
( * दिरहम : संयुक्त अरब अमीरात की मुद्रा )

                              - श्रीकृष्ण शर्मा 

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पुस्तक - '' एक नदी कोलाहल ''  ,  पृष्ठ - 59






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