'' साँसों को कब तक बहलाएँ ''
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आँगन की मुठ्ठी भर धूप गयी ,
सीला मन कैसे गरमायें हम ?
दिन ने घी - सेंदुर के साँतिये बनाये थे
औ ' भींतों छापे थे हल्दी के थापे ,
आश्वासन के वे रंगीन और चमकीले
चेहरे भी आ काली आँधी ने ढाँपे ,
सईं - साँझ सन्नाटा पसर गया ,
किस पर इस दृस्टि को टिकायें हम ?
थाली - सी बजने की सिर्फ़ गूँज सुन पड़ती ,
महराती आवाजें साँपिन की खायीं ,
बैठे हैं सपनों को घेरे कुछ भाग्यहीन ,
पर अलाव की गीली लकड़ी तक कड़ुवायी ,
गाँठ - गाँठ चिलकन से टूट रही ,
गठिया में कैसे अँगड़ाये हम ?
सूर्य मरा , बैठी है रात किसी विधवा - सी ,
मातमपुरसी करते कुत्ते भी रोते हैं ,
कुहरे की पर्तों - पर्तों में से होकर
लाश ज़िन्दग़ी की सब सुबह तलक ढोते हैं ,
असुरक्षित औ ' त्रासद भरकों में ,
साँसों को कब तक बहलायें हम ?
- श्रीकृष्ण शर्मा
( कृपया इसे पढ़ कर अपने विचार अवश्य लिखें | आपके विचारों का स्वागत है| धन्यवाद | )
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पुस्तक - '' एक अक्षर और '' , पृष्ठ - 51
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सुनील कुमार शर्मा
पी . जी . टी . ( इतिहास )
पुत्र – स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय ,
पचपहाड़ , जिला – झालावाड़ , राजस्थान .
पिन कोड – 326512
फोन नम्बर - 9414771867
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