तुम बिना
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मीत मन के
गीत जैसे।
कल्पना कोमल
कि तुम लय से मधुर हो ,
मीत , छवि के छन्द से भी
तुम सुघर हो ,
मन्द्र स्वर ये
श्लोक निर्झर - नीर - जैसे।
मीत मन के ...
धूपिया स्वर्णाभ
तन फागुन सँजोये ,
शब्द हरसिंगार
झरते गन्ध बोये ,
जगे होठों पर
कमल के दीप जैसे
मीत मन के ...
तुम मिले तो
हुई केसर सृष्टि हर पग ,
तुम गए तो
अन्धसागर हो गया जग ,
तुम बिना हम
मीत सिर्फ अतीत जैसे।
मीत मन के।
- श्रीकृष्ण शर्मा
( कृपया इसे पढ़ कर अपने विचार अवश्य लिखें | आपके विचारों का स्वागत है| धन्यवाद | )
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पुस्तक - '' एक अक्षर और '' , पृष्ठ - 40
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सुनील कुमार शर्मा
पी . जी . टी . ( इतिहास )
पुत्र – स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय ,
पचपहाड़ , जिला – झालावाड़ , राजस्थान .
पिन कोड – 326512
फोन नम्बर - 9414771867
धन्यवाद मयंक जी |
ReplyDeleteधन्यवाद मयंक जी |
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