अक्षरों पर बन्दिशें हैं
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अक्षरों पर बन्दिशें हैं ,
शब्द पर पहरे ,
गीत अब किस ठौर ठहरे ?
चुप्पियों का
एक जंगल है ,
लग रहा
सब कुछ अमंगल है ,
सुन न पड़ता कुछ ,
आवाजें कहीं जाकर
गड़ गयीं गहरे।
गीत अब किस ठौर ठहरे ?
घुट रही है
कण्ठ में वाणी ,
किन्तु फूटेगी
किसी ज्वालामुखी - सी
पीर कल्याणी ,
तब न जन के रहेंगे
यों दर्द में डूबे हुए
ये ज़र्द औ ' ख़ामोश चेहरे।
गीत अब किस ठौर ठहरे ?
अक्षरों पर बन्दिशें हैं ,
शब्द पर पहरे।
- श्रीकृष्ण शर्मा
( कृपया इसे पढ़ कर अपने विचार अवश्य लिखें | आपके विचारों का स्वागत है| धन्यवाद | )
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पुस्तक - '' अँधेरा बढ़ रहा है '' , पृष्ठ - 66 , 67
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सुनील कुमार शर्मा
पी . जी . टी . ( इतिहास )
पुत्र – स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय ,
पचपहाड़ , जिला – झालावाड़ , राजस्थान .
पिन कोड – 326512
फोन नम्बर - 9414771867
Bahut sundar geet likha aapne. Badhai
ReplyDeleteधन्यवाद मयंक जी एवं रश्मि जी कि आपको ये रचना पसंद आई |
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना ।
ReplyDeleteधन्यवाद मनीष जी |
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