Thursday, November 5, 2015

ज्योति - गीत ( चार ) - '' दिवाली के दीप जलाने वालों के नाम '' नामक नवगीत , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत - संग्रह - '' अँधेरा बढ़ रहा है '' से लिया गया है -









कुछ दिनों पहले जलाये 
दीप हमने ढेर सारे ,
रोशनी से भर गये थे 
घर गली छज्जे दुआरे । 

            किन्तु वह सब रात भर का था ,
            सच कहें तो बात भर का था । 

ज़िन्दगी के सँग सुबह की 
चूड़ियाँ जब कुनमुनायीं ,
जब कि पूरव के क्षितिज पर 
धूप चढ़ कर गुनगुनायी 

            बुझ गये वे दीप जिनने 
            रात भर अँधियार झेले ,
            जो कि निशि के राज्य में भी 
            सिर उठा कर थे अकेले । 

जो गला कर नेह अपना ,
काँपती साँसें जला कर ,
दे रहे थे जो उजाला ,
सिर्फ कज्जल - धूम्र पाकर । 
उन दियों ने अन्त में 
निज प्राण त्यागे ,
सूर्य के इस देश में 
दीपक अभागे । 
           सब अँधेरे में अचानक खो गया है ,
           आज यह इंसान को क्या हो गया है ?

क्या कहें ?
सच तो यही है -
जो जले ,
जिनने उजाला भी दिया ,
अँधियार में हैं । 
           देश की ख़ातिर 
           जिये औ ' मरे जो ,
           उन सब शहीदों की शहादत की कथाएँ 
           विस्मरण के गार में है । 

स्वेद जिसका 
जिन्दगी के मोतियों को आब देता ,
वही हलधर ,
साँस लेता पतझरों में । 
           कर्म जिसका 
           सभ्यता को सूर्य - जैसी ताव देता ,
           उस भगीरथ की बसी दुनिया 
           उजड़ते और ढहते खँडहरों में । 
पर ,
मुखौटे बाँध 
सत्ता में विषैले नाग बैठे । 
और पूजाघरों में 
बहुरूपिये रख आग बैठे । 
           स्वार्थान्ध कुबेर 
           लक्ष्मी स्याह कर दासी बनाये । 
           रक्त - प्यासे भेड़िये 
           हर भेड़ पर आँखें गड़ाये । 

जिन्दगी 
लाचार औ ' बेबस खड़ी ,
हैवानियत हँसती । 
बढ़ रही हर चीज़ की क़ीमत ,
मगर इंसानियत सस्ती ।
इसी से यह ग़रीबी , भुखमरी , बेरोजगारी है ,
कफ़न को नोंचने तक की बनी नीयत हमारी है । 

मगर अब भी 
अँधेरे के लिए दीपक न बन पाये ,
नहीं इंसानियत के दर्द से अब भी पिघल पाये ,
पतन की इन्तेहा यह देश को बदनाम कर देगी ,
ये हालत हम सभी को विश्व में गुमनाम कर देगी । 

अँधेरा 
बाहरी हो 
या कि हो भीतर ,
हमें गुमराह करता है ,
कि हो इंसान कैसा भी 
अँधेरे से सदा वह डरा करता है । 
           इसी से -
           है तुम्हें सौगन्ध माटी की ,
           - नहीं सोना ,
           - जगे रहना ,
           - कि अपने ग़लत कामों से 
           कभी बनना नहीं बौना ,
           - अँधेरे में नहीं खोना । 

इसी से - 
एक दिन केवल दिवाली को 
जलाना दीपकों का है नहीं काफी ,
जलो खुद , दूसरों को भी उजाला दो ,
- यही अब रह गयी है राह बस बाकी ।  


                                           - श्रीकृष्ण शर्मा 

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पुस्तक - अँधेरा बढ़ रहा है ''  ,  पृष्ठ - 91, 92 , 93 , 94

सुनील कुमार शर्मा  
पुत्र –  स्व. श्रीकृष्ण शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय ,
पचपहाड़ , जिला – झालावाड़ , राजस्थान .
पिन कोड – 326512
फोन नम्बर - 9414771867


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