Tuesday, November 24, 2015

'' झील रात की ''नामक नवगीत , कवि श्री श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत - संग्रह - '' अँधेरा बढ़ रहा है '' से लिया गया है -









साँझ - सुबह के मध्य अवस्थित झील रात की ,
भरी हुई है अँधियारे से । 

नीली - नीली लहर नींद की उठतीं - गिरतीं ,
अवचेतन मन की कितनी ही नावें तिरतीं ,
कुण्ठाओं के कमल खिले हैं 
सपनों - जैसे । 
          साँझ - सुबह के मध्य अवस्थित झील रात की ,
          भरी हुई है अँधियारे से । 

इसी झील के तट पर पेड़ गगन है वट का ,
काला बादल चमगादड़ - सा उल्टा लटका ,
शंख - सीप नक्षत्र रेत में 
हैं पारे - से । 
          साँझ - सुबह के मध्य अवस्थित झील रात की ,
          भरी हुई है अँधियारे से ।   

नंगी नहा रहीं प्रकाश की लाख बेटियाँ ,
तट पर बैठीं बाथरूम - गायिका झिल्लियाँ ,
खग चीखे -
वह डूब रहा है चाँद ,
बचा लो 
गहरे में से । 
          साँझ - सुबह के मध्य अवस्थित झील रात की ,
          भरी हुई है अँधियारे से ।     


                                                    - श्रीकृष्ण शर्मा 

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पुस्तक - '' अँधेरा बढ़ रहा है ''  ,  पृष्ठ -22 , 23 

sksharmakavitaye.blogspot.in
shrikrishnasharma.wordpress.com

सुनील कुमार शर्मा  
पुत्र –  स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय ,
पचपहाड़ , जिला – झालावाड़ , राजस्थान .
पिन कोड – 326512
फोन नम्बर - 9414771867

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