Wednesday, July 29, 2015

पुस्तक ( दोहा - संग्रह ) - '' मेरी छोटी आँजुरी '' के शीर्षक - '' संग - साथ थे जो कभी '' से लिए गए दोहे ( भाग - १ )









( 1 )

रहे रात भर खोजते , हम सपनों के गाँव |
किन्तु न मिल पाये कहीं , बचपन के वे ठांव |

( 2 )

संग - साथ थे जो कभी , बन लंगोटिया यार |
वे कपूर - से उड़ गये , सात समन्दर पार |

( 3 )

देख रहा अब भी हमें , वह सपनीला चाँद |
भोर न जिसका गद्य में , कर पायी अनुवाद |

( 4 )

मिले हमें भी राह में , प्यार भरे कुछ ठौर |
जिनकी यादों के सदा , रहे महकते बौर |

( 5 )

रात बीतती जा रही , अँधियारे के तीर |
घेरे मुझको अजदही , सन्नाटी प्राचीर |

( 6 )

लगता है रणक्षेत्र है , गंगा - जमुन दोआब |
जब देखो तब आँख में , आ जाता सैलाब |

( शेष भाग - 2 पर )


                   - श्रीकृष्ण शर्मा 

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पुस्तक - '' मेरी छोटी आँजुरी ''  ,  पृष्ठ - 37












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