Wednesday, July 15, 2015

गीत संग्रह – ‘’ मेरी छोटी आँजुरी ‘’ से लिया गया गीत – ‘’ मुक्त छन्द के ओ जनक ! ‘’ ( भाग - 2 )









भाग -1 से आगे -

( 7 )

अश्रु बहाता कवि स्वयं , समझ और का नीर । 
' तुलसीदास ' लिखा गयी , ' महाप्राण ' की पीर । । 

( 8 )

सम्पादक के द्वार जो , तिरस्कृता - निष्पन्द । 
थी वह ' जूही की कली ' , नव कविता की गन्ध । । 

( 9 )

विद्रोही तेवर रहे , रूढ़ि सभी दीं  तोड़ । 
छन्द - भाव - भाषा सभी , के  मुँह डाले मोड़ । । 

( 10 )

पीड़ा और अभाव ही , मसिजीवी का भाग्य । 
रहा निराला का यही , महज एक दुर्भाग्य । । 

( 11 )

' मुक्तछन्द ' के ओ जनक , ओ शोषण के काल । 
कालजयी , युग - प्रवर्तक , सांस्कृति वेताल । । 

( 12 )

बंकिम - शरद - रवीन्द्र  त्रय , हैं तुमसे जीवन्त । 
अधुनातन कवि - कुल - गुरु , चरणों नमन अनन्त । । 


                                                          - श्रीकृष्ण शर्मा 

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पुस्तक - '' मेरी छोटी आँजुरी ''  ,  पृष्ठ - 30 ,31












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