Sunday, July 12, 2015

पुस्तक ( गीत संग्रह ) - '' बोल मेरे मौन '' से लिया गया गीत - ''गीतों के स्वर ''










गीतों के स्वर टूट रहे हैं । । 

सुघर - सलोने सपने मेरे ,
सुबह हुई तो झूठ रहे हैं । 
गीतों के स्वर टूट रहे हैं । । 

छाले दृग में पड़े , ज्योति 
आशा - विद्युत की सहन नहीं थी ,
क्योंकि निराशा के तम की ही 
आँखें तो अभ्यस्त रही थीं ;

रिसता है पानी , सुधियों के 
स्यात फफोले फूट रहे हैं । 
गीतों के स्वर टूट रहे हैं । । 

                            
                         - श्रीकृष्ण शर्मा 
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पुस्तक - ''  '' बोल मेरे मौन ''   ,  पृष्ठ - 15










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